अरब के लोगों का मानना है कि उनके यहां लोकतंत्र आर्थिक स्थिरता लाने में नाकाम रहा है.
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देशों में हुए एक नए और बड़े सर्वे से पता चला है कि यहां के लोगों का मानना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में आर्थिक हालात खराब हो रहे हैं.
अरब बैरोमीटर नेटवर्क ने बीबीसी न्यूज़ अरेबिक के लिए नौ अरब देशों और फ़लस्तीनी क्षेत्र के 23 हज़ार लोगों से सवाल पूछे हैं.
इनमें से अधिकतर का मानना है लोकतंत्र के तहत इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था खराब हुई है.
सर्वे के नतीजे ऐसे वक्त आए हैं, जब अरब देशों में लोकतंत्र के लिए कथित अरब स्प्रिंग के आंदोलन हुए थे.
इन विरोध प्रदर्शनों दो साल बाद इनमें से सिर्फ एक देश ट्यूनीशिया में लोकतंत्र बरकरार रहा था.
लेकिन पिछले सप्ताह यहां भी नए संविधान का मसौदा तैयार हुआ है. अगर ये संविधान मंज़ूर हो गया तो यह देश फिर तानाशाही के दौर में वापस जा सकता है.
माइकल रॉबिन्स प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में रिसर्च नेटवर्क अरब बैरोमीटर के डायरेक्टर हैं.
इस रिसर्च नेटवर्क ने 2021 के आखिर से 2022 के बसंत के महीनों तक मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देशों में विश्वविद्यालयों और पोलिंग संगठनों साथ मिल कर सर्वे किया.
रॉबिन्स का कहना है कि 2018-19 के सर्वे के बाद इस सर्वे में लोकतंत्र के प्रति लोगों के नज़रिये में काफी बदलाव आया है.
वह कहते हैं, ” लोगों के बीच ये अहसास तेज़ी से बढ़ता जा रहा है लोकतंत्र शासन का सबसे अच्छा स्वरूप नहीं है. ये हर चीज़ का इलाज नहीं है. पूरे इलाके में हम देख सकते हैं कि लोग भूख से पीड़ित हैं. लोगों को रोटी चाहिए. जो हालात हैं उससे लोग हताश हैं.”
सर्वे के तहत जिन देशों में लोगों से सवाल पूछे गए वहां जवाब देने वाले आधे लोग औसतन इस बात से सहमत थे कि लोकतंत्र में अर्थव्यवस्था कमज़ोर है.
ईआईयू डेमोक्रेसी इंडेक्स के मुताबिक मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका का प्रदर्शन सबसे खराब है. वहीं इसराइल के लोकतंत्र में खराबी बताई गई है. ट्यूनीशिया और मोरक्को को ‘हाइब्रिड शासन’ के तहत रखा गया है. बाकी के इलाके को ‘अधिनायकवादी शासन’ के तहत रखा गया है.
मज़बूत अधिनायकवादी नेता की चाहत
सात देशों और फ़लस्तीनी इलाकों में अरब बैरोमीटर को जवाब देने वाले आधे से अधिक इस बयान से सहमत थे कि उनके देश को एक ऐसा नेता चाहिए जो ज़रूरत पड़े तो नियमों को तोड़ कर चीजें करवा ले.
सिर्फ़ मोरक्को में ऐसा मानने वालों की संख्या आधे से कम थी.
ट्यूनीशिया में सर्वे के दौरान दस में से आठ लोग इस बयान से सहमत थे कि देश को ऐसा ही नेता चाहिए. 2021 में यहां राष्ट्रपति सईद ने सरकार को बर्खास्त कर संसद को निलंबित कर दिया था.
उनके विरोधियों ने इसे तख़्तापलट कहा था लेकिन उन्होंने कहा कि पूरी तरह भ्रष्ट हो चुकी राजनीतिक व्यवस्था को ठीक करने के लिए यह ज़रूरी है. सईद के इस फै़सले को दस में से आठ लोगों ने ठीक माना.
ट्यूनीशिया अकेले ऐसा देश था जिसमें 2011 में अरब स्प्रिंग के बाद भी लोकतंत्र बरकरार रहा था. लेकिन सईद के नेतृत्व में यह फिर अधिनायकवाद की ओर लौट आया.
ईआईयू डेमोक्रेसी इडेक्स 2021के मुताबिक ट्यूनीशिया रैंकिंग में 21 स्थान नीचे चले गया. इसे ‘हाइब्रिड शासन’ के तौर पर दोबारा वर्गीकृत किया गया है. यानी ये ख़ामियों वाले लोकतंत्र से ‘हाईब्रिड शासन’ की कैटेगरी में आ गया है.