ज्योतिषाचार्य पं.अविनाश मिश्र शास्त्री (चित्रकूटधाम)

जिस स्थान पर भवन, घर का निर्माण करना हो, यदि वहाँ पर बछड़े वाली गाय को लाकर बाँधा जाय तो वहाँ सम्भावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाता
है, कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएँ नहीं आतीं।
गाय के प्रति भारतीय आस्था को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि गाय सहज रूप से भारतीय जनमानस में रची-बसी है। गोसेवा को एक कर्तव्य के रूप में माना गया है। गाय सृष्टि मातृका कही जाती है। गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिये निवेदन के प्रसंग पुराणों में बहुत प्रसिद्ध हैं। ‘समरांगणसूत्रधार’-जैसा प्रसिद्ध बृहद्वास्तुग्रन्थ गोरूप में पृथ्वी-ब्रह्मादि के समागम-संवाद से ही आरम्भ होता है।
वास्तुग्रन्थ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माणका शुभारम्भ करनेसे पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बाँधना चाहिये, जो सवत्सा (बछड़ेवाली) हो। नवजात बछडे को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमिपर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वो समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि ग्रन्थों में कहा गया है ,महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयता पूर्वक सांस लेती है तो उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है।
निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम।
विराजयति तं देशं पापं चास्यापकर्षति ।।
यह भी कहा गया है कि जिस घर में गाय की सेवा होती है, वहाँ पुत्र-पौत्र, धन, विद्या आदि सुख जो भी चाहिये, मिल जाता है। यही मान्यता अत्रिसंहिता में भी आयी है। महर्षि अत्रि ने तो यह भी कहा है कि जिस
घर में सवत्सा धेनु नहीं हो, उसका मंगल-मांगल्य कैसे
होगा?
गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। इससे घरों में सर्वबाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। बच्चों में भय नहीं रहता। विष्णुपुराण में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गये तो नन्द-दम्पती ने गाय की पूँछ घुमाकर उनकी नजर उतारी और भयका निवारण किया। सवत्सा गाय के शकुन
लेकर यात्रा में जाने से कार्य सिद्ध होता है।
पद्मपुराण और कूर्मपुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लाँघकर नहीं जाना चाहिये। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिये जाते समय गाय के रँभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है। संतान-लाभ के लिये गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है।
शिवपुराण एवं स्कन्दपुराण में कहा गया है कि गो सेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता। गाय के पाँवकी धूलिका भी अपना महत्त्व है। यह पापविनाशक है, ऐसा
गरुडपुराण और पद्मपुराण का मत है। ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि गोधूलि वेला विवाहादि मंगलकार्यों के लिये सर्वोत्तम मुहूर्त है। जब गायें जंगल से
चरकर वापस घर को आती हैं, उस समयको गोधूलि वेला कहा जाता है। गायके खुरों से उठने वाली धूलराशि। समस्त पाप-तापों को दूर करनेवाली है। पंचगव्य एवं पंचामृत की महिमा तो सर्वविदित है ही। गोदान की महिमा से कौन अपरिचित है ! ग्रहों के अरिष्ट-निवारण के
लिये गोग्रास देने तथा गौ के दान की विधि ज्योतिष-ग्रन्थों में विस्तार से निरूपित है। इस प्रकार गाय सर्वविध कल्याणकारी ही है।
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