अयोध्या। उत्तर प्रदेश में कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर ज़ोर देते हुए, टेक्नोलॉजी को कृषि विकास का मुख्य इंजन बताया गया। अचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (ANDUAT) में हुए राज्यस्तरीय वर्कशॉप ‘फसल सुधार के लिए बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग’ में मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. के. वी. राजू ने कहा कि अब समय है जब विज्ञान और टेक्नोलॉजी के सहारे हम कृषि में अगली क्रांति लाएं।
डॉ. राजू ने कहा, “पिछले आठ सालों में उत्तर प्रदेश ने जबरदस्त तरक्की की है। राज्य की जीडीपी अब करीब ₹30 लाख करोड़ तक पहुँच गई है, और यह 14% की दर से बढ़ रही है। इसमें कृषि एक बड़ी भूमिका निभा रही है। लेकिन चावल और गेहूं जैसी फसलों की उत्पादकता में रुकावट चिंता का विषय है। अब पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर को मिलकर वैज्ञानिक समाधान देने होंगे।”यह वर्कशॉप बायोटेक कंसोर्टियम इंडिया लिमिटेड (बीसीआईएल) द्वारा ANDUAT के सहयोग से और फेडरेशन ऑफ़ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ऍफ़एसआईआई) के समर्थन से आयोजित किया गया। यह उत्तर प्रदेश की पहली आधिकारिक पहल थी जिसमें कृषि में बायोटेक्नोलॉजी के उपयोग पर फोकस किया गया।
डॉ. राजू ने ज़ोर देकर कहा कि अब समय है जब हम गन्ने के अलावा मक्का और आलू जैसी फसलों की ओर डायवर्सिफाई करें और बायोटेक्नोलॉजी टूल्स का इस्तेमाल करके पैदावार में अंतर को पाटा जाए और किसानों की आमदनी बढ़ाई जाए। उन्होंने बताया कि राज्य कई इंटरनेशनल रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन्स के साथ काम कर रहा है और 200 एकड़ में एक अत्याधुनिक सीड पार्क भी तैयार हो रहा है।
उत्तर प्रदेश देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में करीब 20% का योगदान देता है, लेकिन उत्पादकता में अभी भी बड़ा अंतर है। जहाँ पंजाब में चावल की उत्पादकता 6.5 टन प्रति हेक्टेयर है, वहीं उत्तर प्रदेश में यह सिर्फ 1.7 से 2.4 टन है। दालों की पैदावार भी बहुत कम है। एक्सपर्ट्स ने बताया कि बदलते कीट और बीमारियों के दबाव के सामने पारंपरिक ब्रीडिंग के तरीके अब सीमित हो गए हैं।
देश के अलग-अलग राज्यों में ऐसे वर्कशॉप्स किए जा रहे हैं ताकि जीएम और जीन-एडिटेड फसलों जैसी इनोवेशन को लेकर अवेयरनेस फैलाई जा सके। यह उत्तर प्रदेश में ऐसा पहला आयोजन था।
ऍफ़एसआईआई के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर राघवन संपतकुमार ने कहा, “अब और देरी नहीं की जा सकती। हमें ऐसे टेक्नोलॉजीज़ अपनाने होंगे जो क्लाइमेट चेंज के असर को कम कर सकें।” उन्होंने कहा कि बात सिर्फ प्रोडक्शन की नहीं है, बल्कि सस्टेनेबिलिटी की है। प्रिसिशन बायोटेक्नोलॉजी टूल्स से इनपुट का बेहतर उपयोग किया जा सकता है और इससे किसानों की आजीविका भी मजबूत होगी।
वर्कशॉप में यह ज़रूरी बताया गया कि राज्य के कृषि अधिकारियों, कृषि विश्वविद्यालयों और KVKs को इस विषय पर ट्रेनिंग दी जाए ताकि वे बायोटेक्नोलॉजी का ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल कर सकें। हालांकि केंद्र सरकार कुछ बायोटेक फसलों के लिए नीति बना चुकी है, लेकिन असल इम्प्लीमेंटेशन राज्यों की भागीदारी से ही होगा। इसलिए इस तरह के वर्कशॉप बहुत अहम हैं।
बीसीआईएल की चीफ जनरल मैनेजर डॉ. विभा आहूजा ने कहा, “जीएम फसलों से जुड़ी रेगुलेटरी बाधाएँ अब दूर की जा रही हैं। हमारा मिशन है कि हम राज्यों के साथ सक्रिय सहभागिता करके बायोटेक्नोलॉजी को खेतों तक पहुँचाएं।” उन्होंने बताया कि इंडियन लैब्स में शानदार रिसर्च हो रही है और अब वक्त है कि इसका फायदा किसानों तक पहुँचे।
उन्होंने कहा, “भारत में पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बीच बेहतरीन कोलैबोरेशन है। हमारा लक्ष्य है कि कृषि विभाग, यूनिवर्सिटी और इनोवेटर्स तक सही नॉलेज और सपोर्ट पहुँचे। हाल ही में माननीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी ने दो जीन-एडिटेड राइस वैरायटीज़ लॉन्च की हैं, जो सही दिशा में कदम है।”
ANDUAT के वाईस चांसलर डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने कहा, “हमें स्टूडेंट्स और साइंटिस्ट्स को एडवांस्ड नॉलेज देना होगा ताकि उत्तर प्रदेश को एग्री-बायोटेक्नोलॉजी का लीडर बना सकें।”
वर्कशॉप में कई प्रतिष्ठित साइंटिस्ट्स और संस्थागत प्रमुखों ने भाग लिया, जिनमें ICAR के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल (क्रॉप साइंस) और NABI, मोहाली के डायरेक्टर और CEO डॉ. टी. आर. शर्मा; CSIR-NBRI, लखनऊ के डायरेक्टर डॉ. अजीत कुमार शासनी; CSIR-CIMAP, लखनऊ के डायरेक्टर डॉ. प्रभोध कुमार त्रिवेदी; और ANDUAT के डायरेक्टर रिसर्च डॉ. एस. के. सिंह शामिल थे।
एक्सपर्ट्स ने ज़ोर देकर कहा कि उत्तर प्रदेश में दो करोड़ से ज़्यादा किसान हैं, ज़मीन का औसत आकार घटकर सिर्फ 1.08 हेक्टेयर रह गया है, और क्लाइमेट वेरिएबिलिटी बढ़ रही है — ऐसे में यथासमय और साइंस-बेस्ड रिफॉर्म्स ही राज्य के कृषि भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं।