नवरात्रि की तौयारियां जोरों-शोरों से शुरू हो चुकी हैं। कल माता शैलपुत्री डोली पर सवार होकर घर पधारेंगी। भक्तजन नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा करते हैं और फिर 10वें दिन उन्हें आदर सम्मान के साथ विदा करते हैं। प्रथम दिन नवदुर्गाओं के पहले स्वरूप सहज भाव वाली देवी शैलपुत्री की पूजा की जाता है जो भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। मान्यता है कि मां का उपवास करने से आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में स्थिरता आती है। देवी प्रकृति स्वरूपा भी है इसलिए स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना मंगलकारी माना जाता है।
देवी शैलपुत्री की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने घर में हवन रखकर सभी देवताओं को आमंत्रित किया था लेकिन उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया। मगर, माता सती बिना बुलाए अपने पिता के घर हवन में सम्मलित होने के लिए चली गई लेकिन राजा दक्ष ने उनके सामने भगवान शिव का बहुत अपमान किया। माता सती पति का अपमान सह नहीं पाई और अग्नि में जलकर भस्म हो गई। इसके बाद उन्होंने पर्वतराज शैलराज की पुत्री के रूप में जन्म लिया।
मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं इसलिए उन्हें हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, मां का वाहन बैल है इसलिए उन्हें वृषभारूढा भी कहा जाता है। मां दाहिने हाथ में पकड़े त्रिशूल से पापियों का नाश करती हैं तो वहीं बाएं हाथ का कमल फूल ज्ञान और शांति को दर्शाता है। मां के माथे पर चंद्रमा विराजित है, जो भक्तों के रोग व पीड़ाओं को दूर करता है। कहा जाता है कि जब मां अरुणोदय काल में प्रकट हुई जब सूरज की किरणों के कारण उनकी रंग नारंगी हो गया था।
मां दुर्गा के देवी स्वरूप माता शैलपुत्री पूजा विधि
. सबसे पहले सुह प्रातः काल स्नान करें। मां शैलपुत्री का ध्यान करते हुए उनकी तस्वीर स्थापित करें। इसके लिए पहले लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
. फिर उसपर केसर या सिंदूर से ‘शं’ लिखकर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। इसके बाद हाथ में लाल पुष्प लेकर ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।’ मंत्र का जाप करके मां को अर्पित करें।
. इसके बाद मां को गाय के शुद्ध घी से बना भोग अर्पित करें।
. मां शैलपुत्री को पीला रंग पसंद है इसलिए इस दिन पीले या नारंगी रंग के कपड़े पहनें। साथ ही देवी को फूल या प्रसाद भी पीले रंग का ही चढ़ाएं।
देवी शैलपुत्री का स्रोत पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
मंत्र – ‘ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।’
श्लोक – टवन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्ट
मंत्र और श्लोक पढ़ने के बाद श्रद्धा से आरती कीर्तन करें। इसके बाद मां के चरणों का ध्यान करें और अपनी मनोकामना को व्यक्त करें। मां आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगी।