कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) ने तुर्की सरकार के खिलाफ अपने लंबे चले सशस्त्र संघर्ष को बंद करने पर सहमति जताई है. जानिए क्या है ये पीकेके, यह तुर्की की राजनीति और इसके पड़ोसी देशों के लिए कितना मायने रखता है?
तुर्की सरकार के खिलाफ 41 साल तक हथियारबंद लड़ाई लड़ने के बाद, ‘कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी’ (तुर्की में संक्षिप्त नाम, पीकेके) ने घोषणा की है कि वह अपने सशस्त्र समूह को भंग कर देगी. तुर्की सरकार के प्रतिनिधियों और विपक्षी दलों के राजनेताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि लंबे समय से चले आ रहे खूनखराबे वाले संघर्ष का अंत होगा, जिसमें अब तक करीब 40,000 लोगों की जान गई है.
पीकेके की इस घोषणा के बाद एक ओर जहां जश्न का माहौल है, वहीं दूसरी ओर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं. जर्मनी और दूसरे देशों ने पीकेके को आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस समूह के भंग होने से, तुर्की में राजनीतिक शक्ति का संतुलन पूरी तरह से बदल सकता है.
तुर्की की राजनीति में क्या बदलाव आएगा?
इस्तांबुल राजनीतिक अनुसंधान संस्थान (इस्तानपोल) के सह-निदेशक सेरेन सेल्विन कोर्कमास कहते हैं कि यह तुर्की की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. उन्होंने बताया, “एक साल पहले हम जिन राजनीतिक समीकरणों की बात कर रहे थे वे आज पूरी तरह से अलग दिख रहे हैं. पार्टियों को अपने कार्यक्रमों और विमर्श को बदलना होगा.”
खास तौर पर, पीपुल्स इक्वालिटी ऐंड डेमोक्रेसी पार्टी (डीईएम) के लिए चीजें बहुत बदल सकती हैं, जो कुर्द समर्थक राजनीतिक पार्टी है. कोर्कमास के मुताबिक, अगले तीन वर्षों में दो चीजें तुर्की की राजनीति पर काफी ज्यादा असर डालेंगी: पीकेके के साथ शांति वार्ता आगे कैसे बढ़ती है और जेल में बंद इस्तांबुल के मेयर इकरम इमामोलु से जुड़ी कानूनी स्थिति.
लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित मेयर इमामोलु को मार्च में हिरासत में लिया गया था, जबकि पीकेके के साथ शांति वार्ता की प्रक्रिया पहले से ही चल रही थी. कोर्कमास ने बताया कि इमामोलु की अपनी पार्टी, रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) को अब एर्दोआन सरकार के ‘नए दुश्मन’ के तौर पर बताया जा रहा है. वे कुर्द समर्थक राजनीतिक आंदोलन की जगह ले रहे हैं, जो हाल के वर्षों में तुर्की सरकार का सबसे बड़ा विरोधी था.
एर्दोआन को चुनौती देने वाले इस्तांबुल के मेयर हिरासत में
इमामोलु के साथ जेल में कई कुर्द नेता भी बंद हैं, जिनमें सेलाहतीन देमीरतास भी शामिल हैं. वे डीईएम पार्टी के पूर्व सह-अध्यक्ष हैं, जिन्हें 2016 में राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित आतंकवाद के आरोप में जेल में डाला गया था. कुर्द समर्थक अब यह उम्मीद कर रहे हैं कि उनके कुछ नेता जेल से छूट जाएंगे. हालांकि, उन कैदियों का क्या होगा, ये अभी ठीक से पता नहीं है.
इस्तांबुल स्थित थिंक टैंक ‘रिफॉर्म इंस्टीट्यूट’ के राजनीतिक वैज्ञानिक मेसुत येगेन का तर्क है, “संविधान के हिसाब से कुर्द मामले पर बात करने के लिए अब सबसे ज्यादा जरूरी है कि थोड़ी शांति हो या सब मिलकर लोकतांत्रिक तरीके से चलें. असल में, तुर्की को और ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने के लिए संविधान में नए सिरे से बदलाव करना होगा, पर अभी यहां एक ऐसी सरकार है जो सत्तावादी प्रवृत्तियों वाली राष्ट्रपति व्यवस्था को बदलना नहीं चाहती है.”
कई सवालों का फिलहाल कोई जवाब नहीं
यह भी स्पष्ट नहीं है कि पीकेके कब, कैसे और किसे अपने हथियार सौंपेगा. किसी को नहीं पता कि ये सब अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की निगरानी में होगा या नहीं, पूरी तरह से हथियार छोड़े जाएंगे या यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक इशारा है. आधिकारिक स्रोतों का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इन सवालों के जवाब अगले कुछ महीनों में मिल सकते हैं. ऐसा लगता है कि सरकार किसी तरह की योजना पर काम कर रही है.
हालांकि, इन तमाम बातों के बीच एक और बड़ी उलझन बनी हुई है. पीकेके के भीतर ही इस समूह को भंग करने का कुछ विरोध है. समूह के कई बड़े सदस्यों को अभी भी मनाना बाकी है. इसके अलावा, इस बारे में भी चर्चा हुई है कि क्या कोई नया संगठन पीकेके की जगह ले सकता है? कुर्दिस्तान डेमोक्रेटिक कम्युनिटीज यूनियन या केसीके का अब क्या होगा?
तुर्की के विदेश मंत्री हकान फिदान ने स्पष्ट कर दिया है कि पीकेके का हथियारबंद संघर्ष छोड़ देना काफी नहीं होगा. 9 मई को एक टीवी इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा, “सिर्फ हथियार डालना पर्याप्त नहीं है. अवैध और खुफिया संरचनाओं को समाप्त करना आवश्यक है. राजनीतिक दलों और गैर सरकारी संगठनों को दिए गए अवसरों का लाभ उठाकर एक जवाबदेह संगठन मॉडल विकसित किया जाना चाहिए.” फिदान ने कहा कि वे अलग-अलग तरह की स्थितियों के लिए तैयार हैं.
अधर में क्यों लटके हैं पीकेके के सदस्य?
पीकेके के सदस्यों का भविष्य भी अनिश्चित है, जिनमें उत्तरी इराक के पहाड़ों में शरण लेने वाले लड़ाके और शहरों के कार्यकर्ता शामिल हैं. पीकेके के लगभग 60,000 समर्थक हैं, जिनमें इसके लड़ाके, समर्थक और समूह की मदद करने वाले सामान्य नागरिक शामिल हैं.
पीकेके के सभी लोगों को माफ कर देना एक मुश्किल और विवादास्पद बात मानी जा रही है. शायद उन्हें वापस समाज में लाने के लिए कुछ कार्यक्रम बनाए जाएं, लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्पय एर्दोआन सबको एक साथ माफ कर दें, इस बात की संभावना कम ही लगती है. इससे सामाजिक तनाव पैदा होने की आशंका काफी ज्यादा है.
पीकेके के प्रमुख सदस्य तुर्की वापस नहीं लौट पाएंगे. कुछ तीसरे देशों में जा सकते हैं, अन्य उत्तरी इराक में रह सकते हैं, लेकिन इस पर भी अभी फैसला होना बाकी है. एर्दोआन की सरकार निश्चित तौर पर यह नहीं चाहती है कि पीकेके का नेतृत्व करने वाले जो 300 सदस्य पड़ोसी मुल्क इराक, सीरिया या ईरान में रह रहे हैं उन्हें वहीं रहने दिया जाए.
उन पड़ोसी देशों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी बारीकी से नजर रखी जा रही है. सीरिया का उत्तरी भाग अभी भी सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्स या एसडीएफ के नियंत्रण में है.
एसडीएफ का मुख्य हिस्सा तथाकथित पीपुल्स डिफेंस यूनिट्स या वाईपीजी है. तुर्की वाईपीजी को पीकेके की शाखा मानता है. ऐसी अटकलें हैं कि एसडीएफ लड़ाकों को सीरिया की नई राष्ट्रीय सेना में शामिल किया जा सकता है. एसडीएफ में शामिल किसी भी विदेशी को वापस घर लौट जाना चाहिए.
इस प्रक्रिया की शुरुआत में, तुर्की की सरकार ने जोर देकर कहा था कि वाईपीजी को भी अपने हथियार डाल देने चाहिए, लेकिन समय के साथ यह मांग कमजोर पड़ती गई.
तुर्की के रक्षा मंत्रालय ने भी अपने शब्दों में बदलाव किया है. अब वह ‘वाईपीजी/पीकेके’ के बजाय ‘एसडीएफ’ का इस्तेमाल करने लगा है. पहले, तुर्की सरकार एसडीएफ नाम का इस्तेमाल करने से बचती थी, क्योंकि उसका कहना था कि यह एक आतंकवादी संगठन को अच्छा नाम देने जैसा है.
क्या है PKK, जिसकी वजह से तुर्की और इराक के बीच तनाव बढ़ रहा है
तुर्की की सत्तारूढ़ जस्टिस ऐंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) के अंदर भी कुछ लोग संदेह कर रहे हैं. एर्दोआन के करीबी पूर्व सांसद समीली तय्यर ने चेतावनी दी कि हथियारों के सौंपने और कानूनी मामलों की स्थिति स्पष्ट करने के साथ-साथ, पीकेके के पूर्व लड़ाकों के साथ क्या करना है, यह भी तय करना होगा.
उन्होंने कहा, “सीरिया में जो हो रहा है उससे अलग होकर इस घटनाक्रम को नहीं देखा जा सकता है. पुराने पीकेके को खत्म करने से भी ज्यादा जरूरी हमारी सीमा पर वाईपीजी के खतरे को खत्म करना है.”