श्रद्धांजलि अर्पित की गई

उन्होंने नारी शिक्षा एवं महिला सशक्तिकरण हेतु जीवनपर्यंत कार्य किया :- नरेन्द्र कश्यप
(खरी कसौटी संवाद)
शाहजहांपुर। सोमवार को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन के अंतर्गत कराए जा रहे कार्यों तथा महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन गांधी भवन प्रेक्षागृह, शाहजहांपुर में किया गया।कार्यक्रम में प्रभारी मंत्री नरेन्द्र कश्यप (पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण), सांसद अरुण सागर, विधान परिषद सदस्य सुधीर गुप्ता, जिला पंचायत अध्यक्ष ममता यादव, महानगर अध्यक्ष शिल्पी गुप्ता एवं विधायक जलालाबाद हरि प्रकाश वर्मा, विधायक कटरा वीर विक्रम सिंह, विधायक ददरौल अरविन्द कुमार, विधायक तिलहर सलोना कुशवाहा एवं जिलाधिकारी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, पुलिस अधीक्षक राजेश द्विवेदी, समस्त ब्लॉक प्रमुख, समस्त खंड विकास अधिकारी, सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) एवं समस्त ग्राम प्रधानगण की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम के दौरान सभी अतिथियों द्वारा महारानी अहिल्याबाई होल्कर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन एवं योगदान पर प्रकाश डाला गया। प्रभारी मंत्री नरेन्द्र कश्यप ने कहा महारानी अहिल्याबाई होल्कर, इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की धर्मपत्नी थीं। वे परिहार गोत्र की थीं एवं माहेश्वर को राजधानी बनाकर शासन किया। उन्होंने न केवल राज्य में बल्कि पूरे भारतवर्ष में धार्मिक स्थलों, मंदिरों, घाटों, कुओं, बावड़ियों, मार्गों का निर्माण कराया। काशी विश्वनाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना, सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार, अन्न क्षेत्र और प्याऊ की स्थापना, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति जैसे अनेक कार्य उनके योगदान के प्रतीक हैं।उनके मुख्य योगदानों में से एक 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ मंदिर है जिसका जीरणद्वार महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया साथ ही बनारस का काशी विश्वनाथ मंदिर भी उन्हें की देन है। इस प्रकार उन्होंने देश की प्रगति में विशेष योगदान दिया। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता उन्हें ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यन्त हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अन्धविश्वासों, भय त्रासों और रूढ़ियों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया और बहुत किया। वह चिरस्मरणीय है। उन्होंने नारी शिक्षा एवं महिला सशक्तिकरण हेतु जीवनपर्यंत कार्य किया और समाज के प्रति अपने समर्पण से जनता में देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। उनका जीवन ऐसे काल में प्रेरणास्त्रोत बना जब समाज में अन्याय, अंधविश्वास एवं भय व्याप्त था।