ज्योतिषाचार्य पं.अविनाश मिश्र शास्त्री (चित्रकूटधाम)

यंत्र का धार्मिक, ज्योतिष और वास्तुशास्त्र में विशेष महत्व प्राप्त है। इनका निर्माण अंको, बिंदुओं, शब्दों और मन्त्रों को आकृतियों में होता है। इसके साथ ही यंत्रों में आकृतियों को विशेष नक्षत्रों में बनाया जाता है।
यह एक शक्तिशाली और पवित्र साधन है, जो मानव के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। अगर यंत्र के धार्मिक महत्त्व की बात करें तो यंत्रों में देवी-देवताओं की विशेष ऊर्जा का वास होता है। इन्हें पूजा और साधना में स्थापित करने से व्यक्ति को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इसके अलावा यह जीवन के कष्टों का निवारण भी करते हैं। वहीं, ज्योतिष शास्त्र में यंत्रों का उपयोग ग्रहों और नक्षत्रों की अनुकूलता और प्रतिकूलता को संतुलित करने के लिए किया जाता है। प्रत्येक ग्रह की अपनी ऊर्जा होती है और यंत्र इस ऊर्जा को ग्रहों के अनुरूप समायोजित करता है। सनातन धर्म में यंत्र का उपयोग विशेष साधना, पूजा, और जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। यंत्रों का उपयोग मुख्यतः ऊर्जा केंद्रित करने, नकारात्मक शक्तियों को दूर करने, और देवी-देवताओं की कृपा पाने के लिए किया जाता है। नीचे यंत्र के उपयोग के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है -1- यंत्र की स्थापना -(1) यंत्र को शुभ मुहूर्त या विशेष तिथियों (जैसे नवरात्रि, पूर्णिमा, या ग्रहण) पर स्थापित किया जाता है।
(2) इसे स्वच्छ स्थान पर, मंदिर, पूजा कक्ष, या ध्यान स्थल पर रखा जाता है।
(3) स्थापना से पहले यंत्र को गंगा जल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
2- शुद्धिकरण और प्राण प्रतिष्ठा -(1) यंत्र को शुद्ध करने के लिए धूप, दीप, और मंत्रों का उपयोग करें।
(2) प्राण प्रतिष्ठा के समय यंत्र में देवता या ऊर्जा का आह्वान किया जाता है। यह साधक के मनोभाव और विश्वास पर निर्भर करता है।
3- पूजा और मंत्र जप -(1) यंत्र की पूजा नियमित रूप से करें।
(2) संबंधित मंत्रों (जैसे “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद” श्री यंत्र के लिए) का जप करें।
(3) पुष्प, चंदन, कपूर, और अक्षत अर्पित करें।
4- ध्यान और साधना में उपयोग ——
(1) यंत्र के सामने बैठकर ध्यान करें।
(2) इसे देखकर ध्यान केंद्रित करने से, मानसिक शांति और एकाग्रता मिलती है।
विशेष उपयोग :1- वास्तु शांति के लिए –
(1) वास्तु दोष या नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए यंत्र का उपयोग किया जाता है।
(2) जैसे, श्री यंत्र को घर या कार्यालय में समृद्धि लाने के लिए, दक्षिण-पूर्व दिशा में रखा जाता है।
2- ग्रहों के दोष निवारण के लिए ——
(1) कुंडली में ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए, संबंधित ग्रह यंत्र का उपयोग करें।
(2) जैसे, शनि दोष निवारण के लिए शनि यंत्र की स्थापना करें।
3- धन और समृद्धि के लिए -(1) श्री यंत्र, कुबेर यंत्र, या लक्ष्मी यंत्र का उपयोग आर्थिक उन्नति और समृद्धि के लिए किया जाता है।
4- स्वास्थ्य और रोग निवारण -(1) महामृत्युंजय यंत्र का उपयोग दीर्घायु, स्वास्थ्य, और रोगों से मुक्ति के लिए किया जाता है।
(2) इसे रोगी के पास या सिरहाने रखा जा सकता है।
5- सुरक्षा और भय निवारण ——
(1) हनुमान यंत्र या दुर्गा यंत्र का उपयोग सुरक्षा और भयमुक्त जीवन के लिए किया जाता है।
(2) इसे ताबीज में डालकर, पहनना भी प्रचलित है।
4- यंत्र का पहनना या धारण करना -कुछ यंत्रों को ताबीज या लॉकेट के रूप में पहनने की परंपरा भी है। इसे व्यक्ति की ऊर्जा को संतुलित करने और व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए उपयोग किया जाता है। उदाहरण -(1) श्री यंत्र – सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि के लिए।
(2) हनुमान यंत्र -साहस और शत्रु नाश के लिए।
(3) नवग्रह यंत्र —– नौ ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए।
5- सावधानियां -(1) यंत्र की स्थापना और पूजा पवित्रता और शुद्ध मन से करें।
(2) यंत्र को नियमित रूप से स्वच्छ करें और पूजा में ध्यान दें।
(3) यंत्र का अनादर या अनुचित उपयोग न करें।
(4) यंत्र से संबंधित मंत्रों का सही उच्चारण और विधि से जप करें।
6- निष्कर्ष –यंत्र का उपयोग आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक समस्याओं के समाधान में सहायक होता है। यह ऊर्जा के संतुलन, आंतरिक शांति, और बाहरी समृद्धि के लिए एक प्रभावी साधन है। यंत्र का उपयोग सही विधि और श्रद्धा से करने पर, इसके सकारात्मक प्रभाव को अनुभव किया जा सकता है।
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