सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हर प्रकार के धर्मांतरण को गैर कानूनी नहीं कहा जा सकता है। अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें जिलाधिकारी को सूचित किए बिना शादी करने वाले अंतरधार्मिक जोड़ों पर मुकदमा चलाने से रोकने वाले हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।
न्यायालय ने कहा कि हर तरह के धर्मांतरण को अवैध नहीं कहा जा सकता। जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की पीठ ने मामले में नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई 7 फरवरी के लिए स्थगित कर दी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन SC ने कोई निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया। मेहता ने कहा कि शादी का इस्तेमाल अवैध धर्मांतरण के लिए किया जाता है और हम इस पर आंख नहीं मूंद सकते। HC ने अंतरिम आदेश में राज्य सरकार को मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (एमपीएफआरए) की धारा 10 के तहत उन वयस्कों पर मुकदमा नहीं चलाने का निर्देश दिया था, जो अपनी मर्जी से शादी करते हैं।
MPFRA 2021 को लेकर हो रही बहस
हाई कोर्ट ने 14 नवंबर को कहा कि धारा 10 धर्मांतरण के इच्छुक नागरिक के लिए जिला मजिस्ट्रेट को इस संबंध में (पूर्व) घोषणा पत्र देना अनिवार्य बनाती है, यह हमारी राय में इस अदालत के निर्णयों की पूर्व दृष्टि से असंवैधानिक है। एमपीएफआरए गलतबयानी, प्रलोभन, बल प्रयोग की धमकी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, विवाह या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण को निषेध करता है।
MPFRA 2021 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली 7 याचिकाओं पर हाई कोर्ट का अंतरिम निर्देश आया था। याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम के तहत किसी के खिलाफ मुकदमा चलाने से राज्य को रोकने के लिए अंतरिम राहत मांगी थी। अदालत ने राज्य सरकार को याचिकाओं पर अपना क्रमवार जवाब दाखिल करने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ता उसके बाद 21 दिनों के भीतर जवाब दाखिल कर सकते हैं।