इस बार 16 जुलाई, शनिवार को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi July 2022) का व्रत किया जाएगा। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा करेंगी और फिर रात में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद अपना व्रत पूर्ण करेंगी।
पंचांग के अनुसार, 16 जुलाई को चतुर्थी तिथि दोपहर 01.27 से शुरू होकर 17 जुलाई की सुबह 10.49 तक रहेगी। चतुर्थी तिथि का चंद्रोदय 16 जुलाई को होने से इस दिन ये व्रत किया जाएगा। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से हर संकट से बचा जा सकता है और घर में भी सुख-समृद्धि बनी रहती है। आगे जानिए संकष्टी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय व अन्य खास बातें.
ये हैं संकष्टी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त (Sankashti Chaturthi July 2022 Shuba Muhurat)
16 जुलाई, शनिवार की रात 08.49 से सौभाग्य योग आरंभ होगा। ये समय पूजा के लिए श्रेष्ठ रहेगा। पंचांग के अनुसार इस शनिवार की रात करीब 09.34 पर चंद्रोदय होगा। चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही अपना व्रत पूर्ण करें। इस दिन प्रवर्ध और आयुष्मान के 2 शुभ योग भी रहेंगे।
इस विधि से करें संकष्टी चतुर्थी का व्रत (Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
– शनिवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनें और हाथ में जल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
– इसके बाद किसी साफ स्थान पर पहले चौकी (बाजोट) रखें और उस पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान श्रीगणेश का चित्र या मूर्ति की स्थापना करें।
– सबसे पहले शुद्ध घी का दीपक जलाएं और इसके बाद श्रीगणेश को कुंकुम से तिलक लगाएं और चावल चढ़ाएं।
– इसके बाद फूल माला पहनाएं और पूजन सामग्री जैसे अबीर, गुलाल, रोली, सुपारी जनेऊ, इत्र आदि चीजें एक-एक कर चढ़ाते रहें।
– 11 या 21 दूर्वा की गांठ पर हल्दी लगाकर श्रीगणेश को चढ़ाएं। दूर्वा चढ़ाते समय ये मंत्र बोलें- इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः।
– अंत में भगवान श्रीगणेश को लड्डू या मोदक का भोग लगाएं और आरती करें। प्रसाद बाटंने के बाद चंद्रमा का दर्शन कर अपना व्रत पूर्ण करें।
गणेशजी की आरती (Ganesh ji Ki Aarti)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा .
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥