वर्ष 2022 में आषाढ़ मास में भगवान कार्तिकेय का प्रिय स्कन्द षष्ठी व्रत पड़ रहा है। इस बार यह व्रत 5 जुलाई 2022, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। प्रतिमाह आने वाली षष्ठी तिथि पर भगवान कार्तिकेय का पूजन किया जाता है। जिसे स्कन्द षष्ठी के नाम से जनमानस में जाना जाता है।यह व्रत करने से जीवन की हर परेशानी का निवारण हो जाता है। इस बार यह व्रत पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में मनाया जाएगा। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र 4 जुलाई सुबह 08.44 मिनट से शुरू होकर 5 जुलाई सुबह 10.30 मिनट तक रहेगा।स्कन्द षष्ठी व्रत संतान प्राप्ति, सभी मनोकामनाओं की पूर्ति तथा जीवन में चल रही बाधा, हर तरह की पीड़ा तथा संतान के जीवन में आ रहे कष्टों को दूर करने वाला माना गया है। पष्ठी तिथि के दिन भगवान कार्तिकेय का विधिवत पूजन किया जाता है। इस व्रत को कुमार षष्ठी भी कहा जाता है। आइए जानते हैं षष्ठी व्रत के संबंध में खास जानकारी-
स्कन्द षष्ठी पूजन के शुभ मुहूर्त-
आषाढ़ शुक्ल षष्ठी- सोमवार, 04 जुलाई शाम 6.33 मिनट से शुरू
मंगलवार, 5 जुलाई शाम 7.29 मिनट पर षष्ठी तिथि का समापन होगा।
पूजा विधि-
- स्कन्द षष्ठी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठ कर घर की साफ-सफाई करें।
- प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नानादि करके भगवान का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- इस दिन व्रतधारी को दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके भगवान कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए।
- अब भगवान कार्तिकेय के साथ शिव-पार्वती जी की प्रतिमा को स्थापित करें।
- पूजन में घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।
- साथ ही कलावा, अक्षत, हल्दी, चंदन, इत्र आदि से पूजन करें।
- इस दिन निम्न मंत्र से कार्तिकेय का पूजन करने का विधान है।
‘देव सेनापते स्कन्द कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥’ मंत्र का जप करें। - मौसमी फल, फूल, मेवा का प्रसाद चढ़ाएं।
- भगवान कार्तिकेय से क्षमा प्रार्थना करें और पूरे दिन व्रत रखें।
- सायंकाल के समय पुनः पूजा के बाद भजन, कीर्तन और आरती करने के बाद फलाहार करें।
- रात्रि में भूमि पर शयन करें।
मंत्र- - दुख, कष्ट निवारक कार्तिकेय गायत्री मंत्र- ‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कन्दा प्रचोदयात’।
- शत्रुनाशक मंत्र- ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कन्दा वल्लीईकल्याणा सुंदरा देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते।
भगवान सुब्रह्मण्य की आरती-
जय जय आरती वेणु गोपाला
वेणु गोपाला वेणु लोला
पाप विदुरा नवनीत चोरा
जय जय आरती वेंकटरमणा
वेंकटरमणा संकटहरणा
सीता राम राधे श्याम
जय जय आरती गौरी मनोहर
गौरी मनोहर भवानी शंकर
साम्ब सदाशिव उमा महेश्वर
जय जय आरती राज राजेश्वरि
राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि
महा सरस्वती महा लक्ष्मी
हा काली महा लक्ष्मी
जय जय आरती आन्जनेय
आन्जनेय हनुमन्ता
जय जय आरति दत्तात्रेय
दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार
जय जय आरती सिद्धि विनायक
सिद्धि विनायक श्री गणेश
जय जय आरती सुब्रह्मण्य
सुब्रह्मण्य कार्तिकेय।
स्कन्द षष्ठी कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी ‘सती’ कूदकर भस्म हो गईं, तब शिव जी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है।
देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।
इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर ‘पार्वती’ के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव और पार्वती जी का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है।
कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।
इस संबंध एक अन्य कथा यह भी है कि भगवान कार्तिकेय का जन्म छ: अप्सराओं के छ. अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे छ: अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे।