सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच में वक्फ मामले पर दाखिल हुईं याचिकाओं पर सुनवाई खत्म हो चुकी है। कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया, प्रतिवादियों के अनुरोध के बाद न्यायालय कल दोपहर 2 बजे सुनवाई करेगा।
शीर्ष न्यायालय की वेबसाइट पर जारी वाद सूची के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच (जिसमें न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथ शामिल हैं)
मामले में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में मोदी सरकार के इस संशोधित कानून की खामियां गिनाईं। उन्होंने कहा कि इस संसदीय कानून के जरिए आस्था के अभिन्न अंग के साथ दखलंदाजी की गई है। संविधान का आर्टिकल 26 कहता है कि किसी धर्म या समाज के हिस्से को अधिकार है कि वो धार्मिक और समाजसेवा के लिए किसी भी संस्थान की स्थापना कर सकता है। धार्मिक मामलों को खुद ही मैनेज कर सकता है। चल और अचल संपत्ति का मालिकाना हक और अधिग्रहण करने का भी अधिकार है। कानून के आधार पर मैं धर्म की जरूरी परंपराओं का पालन कर सकता हूं। उन्होंने वक़्फ़ कानून को असंवैधानिक बताया।
एक और सीजेआई ने भी कहा कि जहां तक यूजर द्वारा वक्फ का सवाल है, इसे पंजीकृत करना मुश्किल है। आपकी बात सही है, इसका दुरुपयोग किया जाता है। लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि यूजर द्वारा कोई वास्तविक वक्फ नहीं है।
मेहता ने कहा कि – मैं ऐसा करूंगा।
सीजेआई ने आगे कहा यदि आप यूजर द्वारा वक्फ की पहचान करते हैं, तो यह एक समस्या होगी। उप-धारा 2 पर आते हैं, यह पूरी तरह से विपरीत है।
वक्फ अधिनियम, 1995 में हाल ही में किए गए संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं शीर्ष अदालत में दायर की गई हैं।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं के जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर की है।
कैविएट एक ऐसा नोटिस होता है जिसे मुकदमे के पक्षकार द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है, जो चाहता है कि विरोधी पक्ष की याचिका पर किसी स्थगन आदेश जारी होने की स्थिति में उसकी बात सुनी जाए। साथ ही, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम और उत्तराखंड सहित कई भाजपा शासित राज्यों ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का बचाव करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
कांग्रेस सांसद और लोकसभा में पार्टी व्हिप मोहम्मद जावेद ने शीर्ष न्यायालय में दायर अपनी याचिका में तर्क दिया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) अनुच्छेद 25 (धर्म का पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार), अनुच्छेद 26 (धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता का अधिकार) अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यकों के अधिकार) और अनुच्छेद 300-ए का उल्लंघन करता है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी की ओर से दायर एक अन्य याचिका में कहा गया कि यह संशोधन कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30, 300-ए का स्पष्ट उल्लंघन करते हैं और स्पष्ट रूप से मनमाना हैं।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, आप नेता अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, तैय्यब खान सलमानी और अंजुम कादरी समेत कई अन्य लोगों ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की हैं।