
(खरी कसौटी ब्यूरो)
शाहजहांपुर। बकरीद, जिसे ईद-उल-अज़हा या ईद-उल-ज़ुहा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह पर्व हर साल इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने, ज़ु-अल-हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक, इस वर्ष 2025 में बकरीद आज सात जून, शनिवार को मनाई जाएगी। यह त्योहार रमजान की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद आता है और हज के साथ भी जुड़ा हुआ है। इस्लामिक मान्यताओं में बकरीद का महत्व कुर्बानी की परंपरा से जुड़ा हुआ है। आइए इस लेख में बकरीद पर कुर्बानी का महत्व और इसकी पौराणिक पृष्ठभूमि के बारे में विस्तार से जानते हैं। बकरीद का त्योहार हजरत इब्राहिम की अल्लाह के प्रति अटूट भक्ति और समर्पण की याद में मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार, हजरत इब्राहिम को अल्लाह ने सपने में अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने का आदेश दिया। इब्राहिम, जिन्हें 90 वर्ष की आयु में बेटा इस्माइल नसीब हुआ था, अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे। फिर भी, उन्होंने अल्लाह के हुक्म का पालन करने का निर्णय लिया। जब उन्होंने इस्माइल को कुर्बानी के लिए तैयार किया, तो इस्माइल ने भी सहर्ष सहमति दी।लेकिन जैसे ही इब्राहिम ने कुर्बानी शुरू की, अल्लाह ने चमत्कार किया और इस्माइल की जगह एक मेमने (दुंबा) को कुर्बान कर दिया। इस घटना ने इब्राहिम की भक्ति और आज्ञाकारिता को सिद्ध किया, और तब से बकरीद पर कुर्बानी की परंपरा शुरू हुई। कुर्बानी का महत्व केवल बलिदान तक सीमित नहीं है; यह त्याग, समर्पण और अल्लाह के प्रति पूर्ण विश्वास का प्रतीक है। इस दिन मुसलमान हलाल जानवर जैसे बकरे, भेड़ या ऊंट की कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी के लिए जानवर का स्वस्थ और बालिग होना जरूरी है। कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा परिवार के लिए, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और तीसरा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए। यह प्रथा समाज में एकता, भाईचारे और दान की भावना को बढ़ावा देती है। इस्लाम में कुर्बानी को सवाब का काम माना जाता है, और यह हर सक्षम मुसलमान के लिए वाजिब है, यानी ऐसा कर्तव्य जो फर्ज से ठीक नीचे आता है। बकरीद का एक और महत्वपूर्ण संदेश यह है कि यह हमें स्वार्थ से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करने की प्रेरणा देता है। हजरत इब्राहिम का त्याग हमें सिखाता है कि अल्लाह के प्रति सच्ची भक्ति और विश्वास जीवन के सबसे कठिन निर्णयों में भी हमें सही मार्ग दिखा सकता है। इसके अलावा, यह पर्व हज के साथ भी जुड़ा है, जो इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। हज के दौरान भी कुर्बानी की जाती है, जो हजरत इब्राहिम और उनके परिवार की कुर्बानी को याद करता है। बकरीद (ईद उल अज़हा) का त्योहार हमें बलिदान, त्याग और भाईचारे का संदेश देता है। यह न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस पर्व पर मुसलमान नमाज अदा करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, और अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ खुशियां बांटते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा बलिदान वही है, जो दूसरों के लिए किया जाए।