ज्योतिषाचार्य पं.अविनाश मिश्र शास्त्री (चित्रकूटधाम).
सनातन शास्त्रों में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की महिमा का गुणगान विस्तारपूर्वक किया गया है। जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की उपासना स्वयं देवों के देव महादेव करते हैं। धार्मिक मत है कि मां दुर्गा की पूजा-उपासना करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दु:ख और संकट यथाशीघ्र दूर हो जाते हैं। साथ ही आय आयु सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
‘चण्डी’ शब्द का प्रयोग ‘दक्षा’ (चतुरा) के अर्थ में होता है और ‘मंगल′ शब्द कल्याण का वाचक है। जो मंगल-कल्याण करने में दक्ष हो, वही “मंगल-चण्डिका” कही जाती है। ‘दुर्गा’ के अर्थ में भी चण्डी शब्द का प्रयोग होता है और मंगल शब्द भूमि-पुत्र मंगल के अर्थ में भी आता है। अतः जो मंगल की अभीष्ट देवी है, उन देवी को ‘मंगल-चण्डिका’ कहा गया है।
मनुवंश में ‘मंगल′ नामक राजा थे। सप्त-द्वीपवती पृथ्वी उनके शासन में थी। उन्होंने इन देवी को अभीष्ट देवता मानकर पूजा की थी। इसलिए भी ये ‘मंगल-चण्डी’ नाम से विख्यात हुई। जो मूलप्रकृति भगवती जगदीश्वरी ‘दुर्गा’ कहलाती हैं, उन्हीं का यह रुपान्तर है। ये देवी कृपा की मूर्ति धारण करके सबके सामने प्रत्यक्ष हुई हैं। स्त्रियों की ये इष्टदेवी हैं।
मंगल-चण्डिका-स्तोत्रम् ध्यानः-सुस्थिर यौवना भगवती मंगल-चण्डिका सदा सोलह वर्ष की ही जान पड़ती है। ये सम्पूर्ण रुप-गुण से सम्पन्न, कोमलांगी एवं मनोहारिणी हैं। श्वेत चम्पा के समान इनका गौरवर्ण तथा करोड़ों चन्द्रमाओं के तुल्य इनकी मनोहर कान्ति है। ये अग्नि-शुद्ध दिव्य वस्त्र धारण किये रत्नमय आभूषणों से विभूषित है। मल्लिका पुष्पों से समलंकृत केशपाश धारण करती हैं।
बिम्बसदृश लाल ओठ, सुन्दर दन्त-पंक्ति तथा शरत्काल के प्रफुल्ल कमल की भाँति शोभायमान मुखवाली मंगल-चण्डिका के प्रसन्न वदनारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही है। इनके दोनों नेत्र सुन्दर खिले हुए नीलकमल के समान मनोहर जान पड़ते हैं। सबको सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करने वाली ये जगदम्बा घोर संसार-सागर से उबारने में जहाज का काम करती हैं। मैं सदा इनका भजन करता हूँ।
महादेवजी ने कहाः- ‘जगन्माता भगवती मंगल-चण्डिके ! तुम सम्पूर्ण विपत्तियों का विध्वंस करने वाली हो एवं हर्ष तथा मंगल प्रदान करने को सदा प्रस्तुत रहती हो। मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। खुले हाथ हर्ष और मंगल देनेवाली हर्ष-मंगल-चण्डिके ! तुम शुभा, मंगलदक्षा, शुभमंगल-चण्डिका, मंगला, मंगलार्हा तथा सर्व-मंगल-मंगला कहलाती हो। देवि ! साधु-पुरुषों को मंगल प्रदान करना तुम्हारा स्वाभाविक गुण है। तुम सबके लिये मंगल का आश्रय हो। देवि ! तुम मंगलग्रह की इष्ट-देवी हो। मंगलवार के दिन तुम्हारी पूजा होनी चाहिए। मनुवंश में उत्पन्न राजा मंगल की पूजनीया देवी हो। मंगलाधिष्ठात्री देवि ! तुम मंगलों के लिए भी मंगल हो। जगत् के समस्त मंगल तुम पर आश्रित हैं। तुम सबको मोक्षमय मंगल प्रदान करती हो। मंगलवार के दिन सुपूजित होने पर मंगलमय सुख प्रदान करने वाली देवि ! तुम संसार की सारभूता मंगलधारा तथा समस्त कर्मों से परे हो।’
इस स्तोत्र से स्तुति करके भगवान् शंकर ने देवी मंगल-चण्डिका की उपासना की।
वे प्रति मंगलवार के दिन उनका पूजन करके चले जाते हैं। ये भगवती सर्वमंगला सर्वप्रथम भगवान् शंकर से पूजित हुई। उनके दूसरे उपासक मंगल ग्रह हैं। तीसरी बार राजा मंगल ने तथा चौथी बार मंगलवार के दिन कुछ सुन्दर स्त्रियों ने इन देवी की पूजा की। पाँचवीं बार मंगल कामना रखने वाले बहुसंख्यक मनुष्यों ने मंगलचण्डिका का पूजन किया। फिर तो विश्वेश शंकर से सुपूजित ये देवी प्रत्येक विश्व में सदा पूजित होने लगी। मुने ! इसके बाद देवता, मुनि, मनु और मानव – सभी सर्वत्र इन परमेश्वरी की पूजा करने लगे।
जो पुरुष मन को एकाग्र करके भगवती मंगल-चण्डिका के इस मंगलमय स्तोत्र के पाठ का श्रवण करता है, उसे सदा मंगल प्राप्त होता है। अमंगल उसके पास नहीं आ सकता। उसके पुत्र और पौत्रों में वृद्धि होती है तथा उसे प्रतिदिन मंगल ही दृष्टिगोचर होता है।
“ज्योतिष शास्त्र, वास्तुशास्त्र, वैदिक अनुष्ठान व समस्त धार्मिक कार्यो के लिए संपर्क करें: –
श्री रामकृष्ण ज्योतिष केन्द्र श्रीरामकृष्णज्योतिष अनुष्ठान केन्द्र संपर्क सूत्र:-7389695052,8085152180





























