इस समय गणपति महोत्सव की धूम केवल मुंबई ही में नही, ब्लकि पूरे देश में है। लोग अपने – अपने घरों में गणपति बप्पा को विराजमान करने के लिये आतुर है। सभी अपने-अपने सामथ्र्य के अनुसार बप्पा की मूर्ति को स्थापित करते है, उनकी पूजा आराधना करते है और गणपति विर्सजन के दिन नदियों या तालाबों में विसर्जित कर देते है। नदियों का पानी तो प्रदूशित होता ही है, ब्लकि पर्यावरण को भी दूशित करता है। क्योंकि अधिकांश मूर्तियों के निर्माण में हानिकारक केमिकल्स, पीओपी का उपयोग किया जाता है।
इसलिये इस गणेश चतुर्थी को मिट्टी से बनी बप्पा की मूर्तियों को स्थापित करें जो किफायती होने के साथ -साथ पर्यावरण को भी रखने में मदद करती है।
धार्मिक महत्व
मिट्टी से बनी मूर्तियां न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखती हैं बल्कि इसके धार्मिक महत्व भी है। पौराणिक कथाओं में भी केवल मिट्टी से ही बनी मूर्तियों को महत्व दिया गया है।
गणेश चतुर्थी के दिन मिट्टी से बने गणपति जी की मूर्ति को स्थापित करना ही अत्यंत शुभ माना जाता है। गणेश पुराण के अनुसार देवी पार्वती ने मिट्टी का ही पुतला बनाया था, फिर शिवजी ने प्राण डाले थे। बाद में हाथी का सिर लगने पर इस बालक का नाम गणेश रखा गया।
मिट्टी से बनी प्रतिमा में पांचो , भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश मिले होते हैं। ये सभी तत्व हमारे जीवन के लिये भी जरूरी हैं। गणेश जी की पूजा करने से हम इन पांचों तत्वों के प्रति आभार प्रकट करते है।





























